बाक़ी न रही हाथ में जब क़ुव्वत-ओ-ज़ोर Admin प्यारी दोस्त शायरी, Rubaai << गर अक़्ल-ओ-शुऊर की रसाई ह... अंदाज़-ओ-अदा से कुछ अगर प... >> बाक़ी न रही हाथ में जब क़ुव्वत-ओ-ज़ोर बन जाए न क्यूँ उक़्दा-ए-ख़ातिर हर पोर पीरी है अगर शब-ए-जवानी की सहर इस सुब्ह की शाम क्या है तारीकी-ए-गोर Share on: