चढ़ती हुई नद्दी है कि लहराती है By Rubaai << हर रंग में उम्मीद का तारा... है चाह ने उस की जब से की ... >> चढ़ती हुई नद्दी है कि लहराती है पिघली हुई बिजली है कि बल खाती है पहलू में लहक के भेंच लेती है वो जब क्या जाने कहाँ बहा ले जाती है Share on: