देखा तो कहीं नज़र न आया हरगिज़ By Rubaai << हक़ है तो कहाँ है फिर मजा... दर-अस्ल कहाँ है इख़्तिलाफ... >> देखा तो कहीं नज़र न आया हरगिज़ ढूँडा तो कहीं पता न पाया हरगिज़ खोना पाना है सब फ़ुज़ूली अपनी ये ख़ब्त न हो मुझे ख़ुदाया हरगिज़ Share on: