हक़ है तो कहाँ है फिर मजाल-ए-बातिल By Rubaai << आँखें हैं कि पैग़ाम मोहब्... देखा तो कहीं नज़र न आया ह... >> हक़ है तो कहाँ है फिर मजाल-ए-बातिल हक़ है तो अबस है एहतिमाल-ए-बातिल नाहक़ नहीं कोई चीज़ राह-ए-हक़ में बातिल का ख़याल है ख़याल-ए-बातिल Share on: