देखूँ कब तक गुलों की ये तिश्ना-लबी Admin जिंदगी जहर शायरी, Rubaai << दीवाना-ए-इश्क़ को नसीहत त... दर्द अपना कुछ और है दवा ह... >> देखूँ कब तक गुलों की ये तिश्ना-लबी फ़ितरत का गिला करूँ तो है बे-अदबी प्यासे तो हैं जाँ-ब-लब मगर अब्र-ए-करम दरिया पे बरसता है ज़हे बुलअजबी Share on: