दुनिया को न तू क़िबला-ए-हाजात समझ Admin मर्द पर शायरी, Rubaai << इक आलम-ए-ख़्वाब ख़ल्क़ पर... दुनिया के लिए हैं सब हमार... >> दुनिया को न तू क़िबला-ए-हाजात समझ जुज़ ज़िक्र-ए-ख़ुदा सब को ख़ुराफ़ात समझ इक लम्हा किसी मर्द-ए-ख़ुदा की सोहबत आ जाए मयस्सर तो बड़ी बात समझ Share on: