ऐ अहल-ए-फ़रासत बढ़ो बे-ख़ौफ़-ओ-हिरास By Rubaai << हैं एक हकीम जी ब-शक्ल-ए-त... उल्फ़त में मरे तो ज़िंदगी... >> ऐ अहल-ए-फ़रासत बढ़ो बे-ख़ौफ़-ओ-हिरास हम-राही-ए-तहक़ीक़ हैं बे-शक-ओ-इब्लास हैं पेच-ओ-ख़म-ए-आसार-ए-सवाद-ए-मंज़िल आवाज़-ए-जरस वसवसा-हा-ए-ख़न्नास Share on: