उल्फ़त में मरे तो ज़िंदगी मिलती है By Rubaai << ऐ अहल-ए-फ़रासत बढ़ो बे-ख़... आलिम ओ जाहिल में क्या फ़र... >> उल्फ़त में मरे तो ज़िंदगी मिलती है ग़म लाख सहे तू एक ख़ुशी मिलती है हर शम्अ को बज़्म-ए-दहर में ऐ 'आसी' जलने ही के ब'अद रौशनी मिलती है Share on: