ऐ ख़ालिक़-ए-ज़ुल-फ़ज़्ल-ओ-करम रहमत कर By Rubaai << लाज़िम नहीं इस दौलत-ए-फ़ा... ख़ूँ हो के टपकती है तमन्न... >> ऐ ख़ालिक़-ए-ज़ुल-फ़ज़्ल-ओ-करम रहमत कर ऐ दाफे-ए-हर-रंज-ओ-अलम रहमत कर सब्क़त है सदा ग़ज़ब पे रहमत को तिरी अपनी तुझे रहमत की क़सम रहमत कर Share on: