लाज़िम नहीं इस दौलत-ए-फ़ानी पे दिमाग़ By Rubaai << रफ़्तार ओ सदा गुम्बद-ए-अफ... ऐ ख़ालिक़-ए-ज़ुल-फ़ज़्ल-ओ... >> लाज़िम नहीं इस दौलत-ए-फ़ानी पे दिमाग़ कर शुक्र जो हासिल है तिरे दिल को फ़राग़ मत तेग़-ए-ज़बाँ से कर दिलों को घाएल भर जाने पे ज़ख़्म के भी रह जाता है दाग़ Share on: