जाहिल की है मीरास 'क़लक़' तख़्त-ओ-ताज Admin मोहताज शायरी, Rubaai << जो जा के न आए फिर जवानी ह... जब बाप मुआ तो फिर है बेटा... >> जाहिल की है मीरास 'क़लक़' तख़्त-ओ-ताज कामिल है सदा बे-हुनरों का मुहताज इबलीस का इस्याँ नहीं जुज़ किब्र-ए-कमाल बे-क़दरी-ए-फ़न का है अज़ल ही से रिवाज Share on: