जो जा के न आए फिर जवानी है ये शय Admin देना शायरी, Rubaai << कहता हूँ ख़ुदा-लगती अक़ीद... जाहिल की है मीरास 'क़... >> जो जा के न आए फिर जवानी है ये शय पर हैफ़ नसीब-ए-राएगानी है ये शय क्या जान की फ़िक्र लेनी देनी है ये चीज़ क्या दिल का ख़याल आनी जानी है ये शय Share on: