हो हिन्द का मद्ह-ख़्वाँ बरस में दो बार Admin हिन्दी शायरी फोटो, Rubaai << इख़्लास की धोके पर हूँ मा... गो उस की नहीं लुत्फ़-ओ-इन... >> हो हिन्द का मद्ह-ख़्वाँ बरस में दो बार है इशरत-ए-राएगाँ बरस में दो बार नौ-रोज़ और उस के बा'द 'नाज़िम' बरसात है फ़स्ल-ए-बहार यहाँ बरस में दो बार Share on: