हम दिल का हर इक ज़ख़्म छुपा लेते थे By Rubaai << ईमाँ का तक़ाज़ा है कि ख़ु... हिजरत तुम्हें करनी है मुह... >> हम दिल का हर इक ज़ख़्म छुपा लेते थे हर एक को सीने से लगा लेते थे अब दोस्त भी हैं दुश्मन-ए-जानी अपने दुश्मन को भी हम दोस्त बना लेते थे Share on: