ईमाँ का तक़ाज़ा है कि ख़ुद्दार बनो By Rubaai << शो'लों की तरह हैं कभी... हम दिल का हर इक ज़ख़्म छु... >> ईमाँ का तक़ाज़ा है कि ख़ुद्दार बनो ज़र-दारों की दहलीज़ पे सज्दा न करो ज़हराब मिले या रसन-ओ-दार 'उबैद' हरगिज़ किसी क़ातिल को मसीहा न कहो Share on: