इज्तिहाद Admin जीने के लिए शायरी, Rubaai << कुन-फ़-यकून से पहले का आल... इक सैल रुका हुआ है अंदर म... >> भरता नहीं पेट जिस क़दर भरता हूँ हर रोज़ हुसूल-ए-रिज़्क़ में मरता हूँ जब मुझ से ये काएनात है बा-मा'नी जीने की जो यूरिश है अबस करता हूँ Share on: