शो'लों की तरह हैं कभी शबनम की तरह By Rubaai << वो ताज है सर पर कि दबा जा... ईमाँ का तक़ाज़ा है कि ख़ु... >> शो'लों की तरह हैं कभी शबनम की तरह हैं ज़ख़्मों की सूरत कभी मरहम की तरह कोई भी नहीं जिस पे भरोसा कीजे याँ लोग बदल जाते हैं मौसम की तरह Share on: