इस बज़्म से सब के सब उठे जाते हैं Admin मजहबी शायरी, Rubaai << जब तक है हम में क़ौमी ख़स... हासिद तुझ पर अगर हसद करता... >> इस बज़्म से सब के सब उठे जाते हैं तस्कीं के जो थे सब उठे जाते हैं इक क़ुव्वत मज़हबी अक़ीदों से थी वो भी तो दिलों से अब उठे जाते हैं Share on: