इसराफ़ से एहतिराज़ अगर फ़रमाते Admin माता पिता की शायरी, Rubaai << जब गू-ए-ज़मीं ने उस पे डा... इंसाँ को चाहिए न हिम्मत ह... >> इसराफ़ से एहतिराज़ अगर फ़रमाते क्यूँ गर्दिश-ए-अय्याम की सैली खाते अंगुश्त-नुमा थी कज-कुलाही जिन की वो फिरते हैं आज जूतियाँ चटख़ाते Share on: