जब गू-ए-ज़मीं ने उस पे डाला साया Admin ये शाम शायरी, Rubaai << जब तक कि सबक़ मिलाप का या... इसराफ़ से एहतिराज़ अगर फ़... >> जब गू-ए-ज़मीं ने उस पे डाला साया तो माह-ए-शब चार-दहम गहनाया अल्लाह की ज़ात है तग़य्युर से बरी शम्स और क़मर का है फ़रो तर पाया Share on: