जर्राह के सामने खोला फोड़ा Admin मुनीर नियाज़ी शायरी, Rubaai << कलकत्ता को डाक में चला हू... हर चंद गुनाहों से हूँ मैं... >> जर्राह के सामने खोला फोड़ा मीज़ान-ए-नज़र में उस ने तोला फोड़ा फोड़े की जगह बग़ल में देखे जो 'मुनीर' सब कहने लगे दिल का फफोला फोड़ा Share on: