झूमी है हर इक शाख़ सबा रक़्साँ है Admin बारूद शायरी, Rubaai << ग़ैरत में सियासत में शुजा... बे-हिस के तग़ाफ़ुल का तो ... >> झूमी है हर इक शाख़ सबा रक़्साँ है मेहर-ओ-मह-ओ-अंजुम की फ़ज़ा रक़्साँ है दोशीज़ा-ए-फ़ित्रत का वरूद-ए-मसऊद दीवाने के होंटों पे दुआ रक़्साँ है Share on: