जो महरम-ए-गुलज़ार-ए-जहाँ होते हैं By Rubaai << हम उस की जफ़ा से जी में ह... लज़्ज़त में ख़ुदी की खो ग... >> जो महरम-ए-गुलज़ार-ए-जहाँ होते हैं वो अपनी लताफ़त को कहाँ खोते हैं हँसना हो अगर हँसते हैं ग़ुंचे की तरह रोते हैं तो शबनम की तरह रोते हैं Share on: