काफ़िर को है बंदगी बुतों की ग़म-ख़्वार Admin मोमिन की शायरी, Rubaai << कहते हैं जो अहल-ए-अक़्ल ह... जो तेज़ क़दम थे वो गए दूर... >> काफ़िर को है बंदगी बुतों की ग़म-ख़्वार मोमिन के लिए भी है ख़ुदा-ए-ग़फ़्फ़ार सब सहल है ये व-लेक होना दुश्वार आज़ादा ओ बे-नियाज़ ओ बेकस बे-कार Share on: