क़तरा समझे हक़ीक़त-ए-दरिया क्या Admin Rubaai << राज़-ए-हस्ती बशर को हो क्... जंगल की ये दिल-नशीं फ़ज़ा... >> क़तरा समझे हक़ीक़त-ए-दरिया क्या ज़र्रे को इल्म-ए-वुसअत-ए-सहरा क्या पाया न सुराग़ ज़ात-ए-बे-पायाँ का अक़्ल-ए-इंसान भटक रही है क्या क्या Share on: