ख़जलत से मरा जाता हूँ क्या ज़िंदा हूँ Admin शायरी साहिर लुधियानवी, Rubaai << लाज़िम मलज़ूम हो गए ज़ात-... हर सर में ये सौदा है कि म... >> ख़जलत से मरा जाता हूँ क्या ज़िंदा हूँ आ'माल से अपने सख़्त शर्मिंदा हूँ साहिर हूँ मिरा हश्र न जाने क्या हो ज़िश्ती में सियह-ताब सा ताबिंदा हूँ Share on: