ख़त्त-ए-आज़ादी लिखा था शोख़ ने फ़र्दा ग़लत Admin आजादी शायरी इन हिंदी, Rubaai << किसी का राग़-ए-मतालिब किस... रोता ही रहूँगा मुस्कुराने... >> ख़त्त-ए-आज़ादी लिखा था शोख़ ने फ़र्दा ग़लत दिल में रखता और कुछ ज़ाहिर लिखा इंशा ग़लत 'आफ़रीदी' जो मिले छाती लगा आँखों में रख दस्तख़त उस का अगर इमला है सर-ता-पा ग़लत Share on: