लफ़्ज़ों के चमन भी इस में खिल जाते हैं Admin तारीफ भरी शायरी, Rubaai << लज़्ज़त चाहो तो वस्ल-ए-मा... क्या तुम से कहें जहाँ को ... >> लफ़्ज़ों के चमन भी इस में खिल जाते हैं बे-साख़्ता क़ाफ़िए भी मिल जाते हैं दिल को मुतलक़ नहीं तरक़्क़ी होती तारीफ़ में सर अगरचे हिल जाते हैं Share on: