लिल्लाह मिरी सोज़िश-ए-पैहम को न छेड़ Admin साजिश शायरी, Rubaai << मय-ख़्वारों से जब दूर नज़... किस तरह से आई है जमाही तौ... >> लिल्लाह मिरी सोज़िश-ए-पैहम को न छेड़ जा राह ले अपनी तपिश-ए-ग़म को न छेड़ मैं ने तिरी जन्नत को कभी छेड़ा है तू भी मिरे ख़ामोश जहन्नम को न छेड़ Share on: