मैं नफ़्स-परस्ती से सदा ख़्वार रहा Admin होशियार शायरी, Rubaai << मरदूद-ए-ख़लाइक़ हूँ गुनहग... लाज़िम मलज़ूम हो गए ज़ात-... >> मैं नफ़्स-परसती से सदा ख़्वार रहा ज़ुल्मत-कदा-ए-ग़म में गिरफ़्तार रहा ग़फ़लत से न दम भर को मिरी आँख खुली बेहोश रहा कभी न होश्यार रहा Share on: