नागाह मुझे दिखा के ताब-ए-रुख़्सार Admin इकबाल शायरी, Rubaai << 'नाज़िम' उसे ख़त ... जानाँ को सर-ए-मेहर-ओ-वफ़ा... >> नागाह मुझे दिखा के ताब-ए-रुख़्सार दीन-ओ-दिल-ओ-होश ले गए वो यकबार आए न दोबारा क्यूँ कर आएँ क्यूँ आएँ सच है कि तजल्ली को नहीं है तकरार Share on: