वो ताज है सर पर कि दबा जाता हूँ By Rubaai << मिलिए उस शख़्स से जो आदम ... शो'लों की तरह हैं कभी... >> वो ताज है सर पर कि दबा जाता हूँ किस राख में खोया सा चला जाता हूँ लम्हात के झोंको न सताओ इतना महसूस ये होता है बुझा जाता हूँ Share on: