पैदल न मुझे रोज़-ए-शुमार उन से दे By Rubaai << जन्नत का समाँ दिखा दिया ह... असलियत अगर नहीं तो धोका ह... >> पैदल न मुझे रोज़-ए-शुमार उन से दे मरकब पे लिए गुनह का बार आने दे मैं घर से लहद तक भी गया हो के सवार महशर में भी तो मुझ को सवार आने दे Share on: