परवाने कहाँ मरते बिछड़ते पहुँचे By Rubaai << हम उस की जफ़ा से जी में ह... जो महरम-ए-गुलज़ार-ए-जहाँ ... >> परवाने कहाँ मरते बिछड़ते पहुँचे दीवाना-सिफ़त हवा से लड़ते पहुँचे प्यास आग में कूद कर बुझाने वाले धुन के पक्के थे गिरते-पड़ते पहुँचे Share on: