पाता नहीं मौत पर कोई शख़्स ज़फ़र By Rubaai << तारीक रगें लहू से रौशन कर... ऐ शाह के ग़म में जान खोने... >> पाता नहीं मौत पर कोई शख़्स ज़फ़र मुमकिन ही नहीं इस से किसी तरह मफ़र हर-चंद इस सफ़र में सख़्ती है बहुत सह ले कि मुसीबत से तक़ाज़ा-ए-सफ़र Share on: