रग़बत जो दिलाई वुसअत-ए-मशरब की Admin शेर दिल शायरी, Rubaai << रक्खो जो मुक़ाबिल उस के स... पाबंद अगरचे अपनी ख़्वाहिश... >> रग़बत जो दिलाई वुसअत-ए-मशरब की शामिल उस में ग़रज़ थी बे-शक सब की लेकिन तब्दील-ए-वज़-ओ-नक़्ल-ए-फ़ातेह है बाज़ की बात और अपने ही मतलब की Share on: