रहबान का क़ैस का महबूब है तू Admin खून शायरी, Rubaai << ज़ोरों पे है रोज़ ना-तवान... मैं ख़ाक था आदमी बनाया तू... >> रहबान का क़ैस का महबूब है तू और बरहमन-ओ-शैख़ का मर्ग़ूब है तू हों अहल-ए-कुनिश्त या कि अहल-ए-मस्जिद हर रंग के तालिबों का मतलूब है तू Share on: