ता हद्द-ए-नज़र दमक रहे हैं ज़र्रे By Rubaai << महबूब ने पैरहन में जब इत्... नालों से कभी नाम न लूँगा ... >> ता हद्द-ए-नज़र दमक रहे हैं ज़र्रे सद-शो'ला-ब-जाँ दहक रहे हैं ज़र्रे मुज़्दा कि मह-ओ-मेहर के ऐवानों पर कौंदों की तरह लपक रहे हैं ज़र्रे Share on: