था आदम-ए-ख़ाकी ग़ज़ब बे-ज़िन्हार Admin खाकी शायरी, Rubaai << उस ख़ित्ते की जा आलम-ए-बा... ता-माह-ए-सियाम हुए बाब-ए-... >> था आदम-ए-ख़ाकी ग़ज़ब बे-ज़िन्हार पर मौत के हाथों से हुआ है नाचार सच है 'क़लक़' इंसान है क्या कुछ सरकश मर कर भी तो होता है ये काँधों पे सवार Share on: