था रंग-ए-बहार बे-नवाई कि न था Admin नई शायरी, Rubaai << वाहिद मुतकल्लिम का हो जो ... तेज़ी नहीं मिनजुमला-ए-औसा... >> था रंग-ए-बहार बे-नवाई कि न था ज़ाहिर था ज़वाल इंतिहाई कि न था कह दो ईमान से ईद-गह के अंदर गर्दिश में था कासा-ए-गदाई कि न था Share on: