वाहिद मुतकल्लिम का हो जो मुंकिर Admin सिर्फ तुम शायरी, Rubaai << या-रब कोई नक़्श-ए-मुद्दआ ... था रंग-ए-बहार बे-नवाई कि ... >> वाहिद मुतकल्लिम का हो जो मुंकिर वो सर्फ़ की इस्तिलाह में है काफ़िर की है तहक़ीक़ सरफ़ियान-ए-हक़ ने हाज़िर ग़ाएब है और ग़ाएब हाज़िर Share on: