उल्फ़त न हो शैख़ की तो इज़्ज़त ही सही Admin Rubaai << उस क़ौम को यक-दिली की रग़... ताक़त वो है बा-असर जो सुल... >> उल्फ़त न हो शैख़ की तो इज़्ज़त ही सही मुर्शिद न बनाओ उन को दावत ही सही बिगड़ा है जो दिल ज़बाँ ही को रोको रोना जो न आए ग़म की सूरत ही सही Share on: