उस क़ौम को यक-दिली की रग़बत ही नहीं Admin अकबर बीरबल शायरी, Rubaai << वो रंग-ए-कुहन तुम्हारे आश... उल्फ़त न हो शैख़ की तो इज... >> उस क़ौम को यक-दिली की रग़बत ही नहीं जो एक करे इधर तबीअ'त ही नहीं अकबर कहता है मेल रक्खो बाहम वो कहते हैं मेल की ज़रूरत ही नहीं Share on: