ये दौर है यूँ अपनी बसीरत का क़तील Admin बशीर की शायरी, Rubaai << आग़ाज़ है कुछ तिरा न अंजा... पुश्त-ओ-शिकम-ओ-चश्म-ओ-लब-... >> ये दौर है यूँ अपनी बसीरत का क़तील जैसे नफ़स-ए-क़ुम से मसीहा हो अलील फ़ितरत की है तस्ख़ीर न आदम का उरूज ये वक़्त के ताबूत में है आख़िरी कील Share on: