आ गिरा ज़िंदा शमशान में लकड़ियों का धुआँ देख कर By Sher << बारिशें उस का लब-ओ-लहजा प... यूँ चार दिन की बहारों के ... >> आ गिरा ज़िंदा शमशान में लकड़ियों का धुआँ देख कर इक मुसाफ़िर परिंदा कई सर्द रातों का मारा हुआ Share on: