अब बहुत दूर नहीं मंज़िल-ए-दोस्त By Sher << फिर बदन में थकन की गर्द ल... कितने ही ज़ख़्म हरे हैं म... >> अब बहुत दूर नहीं मंज़िल-ए-दोस्त काबे से चंद क़दम और सही Share on: