कितने ही ज़ख़्म हरे हैं मिरे सीने में 'नियाज़' By Sher << अब बहुत दूर नहीं मंज़िल-ए... तेरी यादों के लम्हे भी बे... >> कितने ही ज़ख़्म हरे हैं मिरे सीने में 'नियाज़' आप अब मुझ से इनायात की बातें न करो Share on: