अब्र-ए-बहार अब भी जचता नहीं नज़र में By Sher << ख़ुदा का शुक्र है गिर्दाब... उस को पता नहीं है ख़िज़ाँ... >> अब्र-ए-बहार अब भी जचता नहीं नज़र में कुछ आँसुओं के क़तरे अब भी हैं चश्म-ए-तर में Share on: