दर्द-ए-दिल बाँटता आया है ज़माने को जो अब तक 'अंजुम' By Sher << हर चेहरा हर रंग में आने ल... चराग़ चाँद शफ़क़ शाम फूल ... >> दर्द-ए-दिल बाँटता आया है ज़माने को जो अब तक 'अंजुम' कुछ हुआ यूँ कि वही दर्द से दो-चार हुआ चाहता है Share on: