शग़्ल था दश्त-नवर्दी का कभी ऐ 'ताबाँ' By Sher << बुलंद हाथों में ज़ंजीर डा... हम अंजुमन में सब की तरफ़ ... >> शग़्ल था दश्त-नवर्दी का कभी ऐ 'ताबाँ' अब गुलिस्ताँ में भी जाते हुए डर लगता है Share on: